आत्महत्या आज समाज में बहुत बड़ी बीमारी बन गयी है. खासकर युवाओं में सहन शक्ति समाप्त हो चुकी है. प्यार में जरा-सा झटका मिला नहीं कि वे पंखे से झूल जाते हैं. युवक हो या युवती, सुसाइड करने में जरा-सा भी नहीं हिचकते हैं. अब तो यह बीमारी किशोरों में घर करती जा रही है. लेकिन वे यह नहीं सोचते हैं कि उनके पीछे परिवार के लोगों, बंधु-बांधवों, रिश्तेदाराें पर क्या बीतता है? इसी के खिलाफ गौरव ने अपनी आवाज बुलंद की है. शॉर्ट फिल्म काश… बना कर गौरव ने सुसाइड के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है. तभी तो यह फिल्म आज यू ट्यूब पर धूम मचा रही है.
पहली ही फिल्म में अभिनय की धार
मोतिहारी के रहनेवाले इस बिहारी सपूत ने अपनी पहली ही फिल्म में धारदार अभिनय कर एक्टिंग के क्षेत्र में तहलका मचा दिया है. यही वजह है कि महज 10 मिनट की शॉर्ट फिल्म काश… थिंक बिफोर यू एक्ट ने यू ट्यूब पर काफी कम समय में चर्चा में आ गयी. खास बात तो यह है कि इस शॉर्ट फिल्म में गौरव सिर्फ हीरो ही नहीं है, बल्कि निर्देशक और पटकथा लेखक भी वही हैं. कहीं-कहीं तो उसने खुद फिल्म को सूट भी किया है. यूं कहें कि इस फिल्म के माध्यम से गौरव ने मल्टी टास्किंग की सार्थकता को बखूबी निभाया है.
क्या है फिल्म काश… का थीम
यह कहानी है एक युवक की, जो गांव से शहर पढ़ने आता है. उसके साथ उसके माता-पिता के ख्वाब भी होते हैं. लेकिन वह शहरी चकाचौंध और प्यार के जाल में फंस कर वह खुद को असहाय महसूस करने लगता है. वह फ्रस्टेशन में आकर सुसाइड कर लेता है. उसके इस कदम का क्या असर होता है, यही फिल्म का थीम है और मैसेज भी कि सुसाइड किसी प्रॉब्लम का हल नहीं है. उसके आगे परिवार व समाज भी है. घर के लोगों के सपने उससे जुड़े होते हैं. बस लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग सीखने की जरूरत है.
आइए जानते हैं कौन है गौरव
सच में किसी-किसी में नाम में ही उसकी सार्थकता छिपी रहती है. बिहार के इस लाल में कुछ ऐसी ही प्रतिभा छिपी हुई है. मोतिहारी के रहनेवाले गौरव केवल फिल्म कार ही नहीं हैं, वे एक युवा पत्रकार भी हैं, बिहार के ख्याति लब्ध कार्टूनिस्ट भी हैं और फिल्म समीक्षक भी हैं. वे इन दिनों पटना में रह रहे हैं और पटना से ही प्रकाशित हिंदी समाचार पत्र प्रभात खबर में कार्यरत हैं. इसके पहले वह दैनिक जागरण में भी काम कर चुके हैं. वे सोशल साइट पर भी काफी एक्टिव हैं तथा उनका फेसबुक पेज फिल्ममोनिया काफी पसंद किये जा रहे हैं.
आत्महत्या… मत करो यार… It’s not solution इसे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
खास बातचीत
प्रत्यूषा बनर्जी की आत्महत्या ने झकझोरा : गौरव
फिल्म में किस्मत आजमाने की आपने कैसे सोची?
फिल्मों से मेरा लगाव बचपन से रहा है. कई बार देर रात तक पड़ोसी के घर फिल्म देखने की वजह से घर में मार भी पड़ी, पर सही प्लेटफॉर्म न मिलने की वजह से निर्माण के क्षेत्र में जाने की कल्पना तक नहीं की थी. लेकिन फिल्म में जाने को लेकर मन में बार-बार ख्याल आ रहा था. अचानक एक दिन लगा चुपके-चुपके इसकी तैयारी की जाये. ऐसी फिल्म बनायी जाये, जिसमें कम खर्च हो और कैरेक्टर भी ज्यादा नहीं हो. फिल्म जब बन जाये, तब लोगों को यह बात बतायी जाये. बस जिद और जज्बा ने इसमें हाथ आजमाने को विवश कर दिया.
आत्महत्या थीम का आइडिया कहां से आया?
आज आत्महत्या समाज में बीमारी के रूप में पनप रही है. सुसाइड करने वाले ये नहीं सोचते हैं कि उनके पीछे घर के लोग भी हैं. उन पर घर वालों की उम्मीद टिकी हुई है. रोज अखबारों और न्यूज चैनलों पर आत्महत्या की खबर आती रहती है. सच कहूं तो टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी की आत्महत्या ने मुझे काफी झकझोर दिया. काफी दिनों तक मैं उस वाकये पर सोचता रहा. उसी घटना ने मुझे मजबूर कर दिया यह फिल्म बनाने को, ताकि कोई आत्महत्या न करे.
क्या-क्या परेशानियां हुईं?
पहली बात, कोई भी फिल्म बिना परेशानी की नहीं बनती है. दूसरी, पटना में फिल्म बनाने को माहौल नहीं है. तीसरी, दूसरे प्रोफेशन में रहते हुए पहली फिल्म का निर्माण, ऐसे में परेशानियां आयेंगी ही. फिर जब फिल्म पहली है, तो एक्सपीरियेंस की भी कमी रही. इसके बाद भी फिल्म तैयार हो गयी, यह मेरे लिए अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है. हालांकि मैं टेक्नीकली इमेच्योर ही था, पर काफी सारी फिल्में देखने की वजह से काफी कुछ समझने लगा था. प्रयास करता रहा. छोटी-छोटी प्रॉब्लम आयीं, लेकिन सबों को शॉर्ट आउट करता चला गया. इसी का परिणाम है कि रिजल्ट आपके सामने है.
आगे की क्या योजना है?
बेशक काश की सफलता से मनोबल बढ़ा है. यू-ट्यूब पर मिल रही लाइक के लिए लोगों को बधाई. जहां तक आगे की योजना की बात है, तो कई शाॅर्ट फिल्मों के स्क्रिप्ट को तैयार किया हूं. मैं यकीन दिलाता हूं कि मेरी हर फिल्म मनोरंजन के साथ स्ट्रांग मैसेज भी देगी. इसके लिए मेहनत भी कर रहा हूं.
खुद को किस रूप में देखते हैं आप?
देखिए, अभिनय मेरा पैशन है, पर मैं निर्देशन का लुत्फ भी उसी संजीदगी से उठाता हूं. अपनी सोच में प्रभावी तरीके से कहने के लिए जरूरी है कि कमान खुद के हाथ में हो. फिर मल्टी टास्क का जमाना है. अभी इसी अंदाज में आगे बढ़ते रहना है. लेकिन असली पसंद दर्शकों की है. इसलिए, अभी मैं सारा फैसला दर्शकों पर छोड़ता हूं.